दुनिया के दवा बाजार में बज रहा है भारत का डंका

दुनिया के दवा बाजार में बज रहा है भारत का डंका

सेहतराग टीम

भारतीय दवा कंपनियां पूरी दुनिया में अपनी गुणवत्‍ता और कम मूल्‍य के कारण लोकप्रिय हैं। खासकर दुनिया के ऐसे गरीब देश जो विकसित देशों की बहुराष्‍ट्रीय दवा कंपनियों की महंगी दवाएं खरीदने में असमर्थ हैं वो अपनी दवा जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत की ओर देखती हैं। यहां तक कि कारोबार की दुनिया में तेजी से जगह बनाने वाले चीन को भी कुछ खास बीमारियों की दवाओं के लिए भारत पर अपनी निर्भरता बढ़ानी पड़ी है। वैसे दुनिया के सबसे विकसित और अमीर देश अमेरिका भी भारतीय दवाओं का बड़ा बाजार है। आंकड़ों में देखें तो अमेरिका और ब्रिटेन भारतीय दवाओं के सबसे बड़े खरीददार हैं। भारतीय दवा निर्यात का 25 फीसदी अकेले अमेरिका को होता है।

यही वजह है कि देश का फार्मास्युटिकल्स निर्यात 2017-18 में तीन प्रतिशत की वृद्धि के साथ 17.3 अरब डॉलर यानी करीब एक लाख 18 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। हालांकि यदि नियामकीय चिंता न होती और अमेरिका सहित वैश्विक बाजारों में कीमतों पर दबाव नहीं होता तो ये वृद्धि और अधिक हो सकती थी। 
वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 2016-17 में क्षेत्र का निर्यात घटकर 16.7 अरब डॉलर रह गया, जो इससे पिछले वित्त वर्ष में 16.9 अरब डॉलर था। उद्योग विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिकी खाद्य एवं दवा प्रशासन के आयात अलर्ट, नियामकीय अड़चनें और मुद्रा में उतार-चढ़ाव की वजह से भी निर्यात अपेक्षित तेजी से नहीं बढ़ पाया है।

भारत के फार्मा निर्यात का प्रमुख गंतव्य अमेरिका है। उसके बाद ब्रिटेन का नंबर आता है। देश के कुल फार्मा निर्यात का 25 प्रतिशत अमेरिका भेजा जाता है। अन्य महत्वपूर्ण निर्यात गंतव्यों में दक्षिण अफ्रीका, रूस, नाइजीरिया, ब्राजील और जर्मनी शामिल हैं।

हालांकि, सरकार जापान और चीन को निर्यात बढ़ाने का प्रयास कर रही है लेकिन कड़ी पंजीकरण और नियामकीय प्रक्रियाओं की वजह से इसमें दिक्कतें आ रही हैं। वित्त वष्र 2017-18 में देश का कुल निर्यात 303 अरब डॉलर रहा। इसमें फार्मा का हिस्सा छह प्रतिशत रहा।

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